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जूही की कली ………….

man ki baat
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मै हूँ जूही की कली …………..अनदेखी,अनचाही,
मुझे माँ की कोख में भी जगह ना मिली,
माँ तुम्हीं ने तो मुझे पुकारा था ………
फिर क्यों रोकी मेरी राह,क्या तुम्हे न थी मेरी चाह। .

मैं हूँ जूही की कली ……………..अनगढ़,अबला ,
जैसे फूल बिन माली, मै तो बेहया सी पली,
माँ कहाँ थीं तुम तब ………………
छिन रहा था जब मेरा बचपन,कस रहे थे मुझ पर बंधन।

मैं हूँ जूही की कली ……………अनसुनी,अनमनी ,
मैं तो सारी उम्र ना खिली
माँ क्यों ना रखा मेरा मान
गुड़िया देकर मुझे अपनी तरह गुड़िया ही बना दिया।

मैं हूँ जूही की कली …………….अविचल,अभिमानी
मैं तो हर रंग में ढली
नहीं था बंद आसमान,मुझे ही न था अपने पँखों का भान,
मुझे भी आता है पँखों को पसारना,
मैं ही तो हूँ जिसने माँ के गर्भ में ही किया है साजिशों का सामना।

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