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‘बचपन’

man ki baat
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“मन के आँगन में है इक ‘बचपन’का कोना,
छाया पितृ -स्नेह की ,माँ की ममता का बिछौना.


निश्छल सपनों की खेती चंचल अरमानों की फसल,
सुख के सागर में डूबा हर दुःख से अलोना .


मन के आँगन में…………………………………………

जब भी देखा रुक कर, सजा है सुन्दर हर वो पल,
गीत-खिलौने ,गुड़िया- झूले,इक पल हँसना इक पल रोना.


मन के आँगन में……………………………………………………..


थामा इसी ने मुझे, जब-जब दरका अन्तःस्थल,
भर कर मीठी यादों से किया है ह्रदय को ख़ुशी से दूना.


मन के आँगन में है इक ‘बचपन’ का कोना ,
छाया पितृ -स्नेह की ,माँ की ममता का बिछौना ”

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