man ki baat
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“खो गए हैं शब्द सब,अब मौन ही है मुखर .
मन पर हैं परतें बातों की,चुभते शूलों ,सुहानी बरसातों की।
निःशब्द ही रह कर ,चढ़ा भावनाओं के शिखर,
अब मौन ही है मुखर .
मन भी है घटता-बढ़ता , चन्द्रकला की साक्षी देता ,
बंद कपाटों के भीतर , ओढ़े ‘चुप’ का कलेवर ,
अब मौन ही है मुखर।
मन कहाँ ,कभी ठहरता ,बन पवन-गात सा बहता .
अंतस में उतर कर , जलाये आशा-दीप प्रखर ,
अब मौन ही है मुखर .
खो गए हैं शब्द सब ,अब मौन ही है मुखर।”
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