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मेरे कुछ ब्लॉग पोस्ट पढ़ने के बाद मेरे बेटे ने मुझसे कहा ,”अच्छा लिखा है ,पर ज़्यादा कठिन हिन्दी मत लिखना नहीं तो सब भाग जाएँगे.”उसका ऐसा कहना ,कहीं मेरे हिन्दी-प्रेम को आहत कर गया ,हालाँकि ,उसकी ऐसी मंशा नही थी. मेरा ये मानना है कि,कोई भी लेखक या लेखिका ,लिखते समय भाषा की कठिनता या सरलता मे नहीं फँसता ,उसकी अभिव्यक्ति को जिधर प्रवाह मिलता है ,वो उसी ओर मुड़ जाता है. मैं खुद अँग्रेज़ी भाषा की कद्र करती हूँ और ठीक ठाक पढ़ -लिख भी लेती हूँ ,मुझे ये स्वीकार करने मे कोई गुरेज़ नहीं कि,अँग्रेज़ी उपन्यास पढ़ते समय मैं dictionary साथ रखती हूँ. ये विडंबना ही है कि,कठिन हिन्दी ना जानना और कठिन अँग्रेज़ी जानना एक साथ गर्व का विषय बन गये हैं. दोष आज की पीढ़ी का भी नहीं है ,उन्हे अँग्रेज़ी माध्यम तो हमने ही दिया है. आज कुछ पंक्तियाँ अँग्रेज़ीदा लोगों के लिए……….
“हिंद-देश के वासियों हिन्दी से मुँह मत मोडो
माना कि,अँग्रेज़ी की दुनिया है दीवानी,
अँग्रेज़ी मे ही सोचते हैं अब ज्ञानी.
पिछड़ेपन का ठीकरा हिन्दी के सर मत फोड़ो
हिंद-देश के वासियों हिन्दी से मुँह मत मोडो
झाड़ो इंग्लिश-विंग्लिश जम कर
पर मत आंको निज-भाषा को भी कमतर
बात-बात मे हिन्दी की टाँग मत तोडो
हिंद-देश के वासियों हिन्दी से मुँह मत मोडो
खाओ इंग्लिश,पियो इंग्लिश,पहनो भी इंग्लिश
पर सुन लो बस इक यही -गुज़ारिश
अँग्रेज़ी की दौड़ मे , हिन्दी को पीछे मत छोड़ो
हिंद-देश के वासियों हिन्दी से मुँह मत मोडो
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