Menu
blogid : 14218 postid : 48

मोरि सुधारिहीं सो सब भाँति….

man ki baat
man ki baat
  • 48 Posts
  • 375 Comments

उत्तराखंड त्रासदी को आज पंद्रह दिन बीत गए ,पिछले पंद्रह दिनों में अख़बारों में ,ब्लॉग पर बहुत कुछ पढ़ा और टीवी पर बहुत कुछ देखा ……मन बहुत व्यथित है। लाखों लोग सही-सलामत घरों में लौट आये तो हज़ारों लोग काल के मुँह में समा गए।चरों धाम में हुई प्रलयंकारी तबाही के कारणों के बारे में खूब लिखा,पढ़ा और सुना जा चुका है। प्रकृति ने अपने दोहन का बदला लिया और जम कर लिया।ये दुःख की बात है कि ,ऐसा हमारे देश में ही है, जहाँ हमने प्रकृति से सिर्फ लेना ही सीखा है ,धरती, नदी और पहाड़ों का संरक्षण करना हमें आया ही नहीं , ऐसा हमारे देश में ही है जहाँ ,लाखों लोग चार-धाम की दुर्गम यात्रा भगवान्-भरोसे ही करते हैं ,इक्कीसवीं सदी में जब मौसम की भविष्यवाणी सौ प्रतिशत सही होनी चाहिए वहाँ पर्याप्त संसाधन ही नहीं हैं। ऐसा हमारे देश में ही है जहाँ चार-पाँच वर्ष के मासूम बच्चे जिन्हें ‘ईश्वर ‘और ‘जीवन’ जैसे गूढ़ शब्दों का अर्थ ही नहीं मालूम ,वे भी चार-धाम की यात्रा पर निकलते हैं ,ऐसा हमारे देश में ही है जहाँ लोग केवल दिखावे के लिए एक ही तीर्थ-स्थान की कई कई बार यात्रा करते हैं। विडंबना ही है कि ,इस दुःख की घडी में भी हमारे माननीय-गण दिल्ली और देहरादून में सियासत की गुलेल से एक-दूसरे पर निशाना साध रहे थे,हम लानत भेजते हैं उन सभी पर ,लेकिन हमें नाज़ है अपने देश की सेना पर ,जिसने ना दिन देखा न रात ,ना पहाड़ देखा ना खाई ,ना नदी देखी ना पथरीली डगर ,हर जगह ,हर मोर्चे पर सेना ने अपनी सार्थकता सिद्ध की है ,ITBP और NDRF के जवानों ने भी सराहनीय काम किया है ,उन सभी जांबाजों को मेरा सलाम ! अपनों को खोने का गम तो समय के साथ ही भरेगा पर अभी तो सबसे बड़ी चुनौती है तबाह हुए गाँवों के पुनर्वास की। चारों धाम में जीवन सामान्य रूप में लौटे और लोग वहाँ पुनः जाएँ ,इसमें अभी काफी वक़्त लगेगा। कैसा होगा वहाँ का स्वरुप और कैसी होंगी सभी व्यवस्थाएं -ये सब अभी भविष्य के गर्त में ही है। सैकड़ों दौरे होंगे ,हज़ारों मीटिंगे होंगीं ,लाखों ठेके बटेंगे और करोड़ों ,अरबों का वारा-न्यारा होगा ,फिर भी नतीजा क्या होगा पता नहीं।पर यही वो वक़्त है जब सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने चाहिए।मेरी साधारण बुद्धि से मुझे कुछ बातें समझ में आती हैं ,उनका उल्लेख करना चाहूंगी ……

१ -चारों धाम में मंदिर -परिसर के पुनर्वास में प्रकृति के संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाए।
२- धर्मशालाएं और दुकानें सुरक्षित स्थान पर ही बनवाई जाएँ ,इस सम्बन्ध में GSI का सर्वेक्षण उपयोगी हो सकता है।
३- वहाँ जाने वाले तीर्थयात्रियों की न्यूनतम आयु चालीस वर्ष व् अधिकतम आयु साठ वर्ष ही हो।
४-जीवन में बस एक बार ही वहाँ जाने की अनुमति हो ,इस सम्बन्ध में आधार -कार्ड का सहारा लिया जा सकता है।
५-एक निश्चित समयावधि में निश्चित संख्या में ही श्रद्धालु मंदिर-परिसर में हों।
६-मौसम -विभाग को अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त किया जाए तथा मौसम की भविष्यवाणी सौ प्रतिशत सच हो।
७ -NDRF का और विस्तार और सुसंगठन किया जाए तथा यात्रा के हर पड़ाव पर उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए।
८ -आस-पास के पहाड़ों पर मार्ग व् दिशा -सूचक बोर्ड लगाए जाएँ।
९ – तीर्थ-यात्रिओं के लिए चारों धाम की यात्रा सुगम हो ,इससे कहीं पहले वहाँ के गाँवों में जीवन सामान्य हो -ये सुनिश्चित होना चाहिए।

यही समय है जब हम सबको गंभीरता से सोचना होगा कि ,हम अपने धार्मिक -स्थलों को अपनी आस्था के प्रतीक के रूप में देखना चाहते हैं या उसे पर्यटक -स्थल बना कर वहाँ की पवित्रता और शान्ति को नष्ट करना चाहते हैं।निश्चय ही चुनौतियाँ बड़ी हैं और कठिन भी। कब,क्या और कैसे होगा -ये तो वक़्त ही बताएगा।
अंत में जाने से पहले इस त्रासदी से प्रभावित हर इंसान और उत्तराखंड के ज़र्रे-ज़र्रे की ओर से प्रार्थना स्वरुप रामायण की ये चौपाई कहना चाहूँगी …….”मोरि सुधारिहीं सो सब भाँति ,जासु कृपा नहीं कृपा अघाती “

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply