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“आज मंत्री जी की कोठी दुल्हन की तरह सजी है….. आखिर उनकी इकलौती बेटी की शादी जो है. उनके विभाग के अफसर पिछले एक महीने से इस शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं ,पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. मंत्री जी का घर मेहमानों से खचाखच भरा है. बड़े-बड़े पंडाल ,गोल मेजों के चारो ओर बैठने की कुर्सियां ,एक ओर मशहूर ग़ज़ल-गायक कार्यक्रम पेश कर रहे हैं ,तो दूसरी ओर वर-वधू के बैठने के लिए स्टेज बनाया गया है। एक कोने में बड़ी सी मेज़ पर तोहफों का अम्बार लगा है। खाने-पीने की भी बड़ी आलीशान व्यवस्था है,देसी-विदेशी हर प्रकार के लज़ीज़ व्यंजन हैं…….. वहीँ बीचो-बीच एक फव्वारा चल रहा है, जिसके पास एक छोटी सी बच्ची की मूर्ति लगी है,ऐसा लगता है -अभी बोल पड़ेगी।
आधी रात तक शादी का जश्न चलता रहा……. सबने खूब खाया और खूब बर्बाद किया। अब मेहमान लौट रहे हैं , फव्वारा अभी भी चल रहा है ,पर मूर्ति शायद किसी ने लुढका दी है.अरे-रे……. ये क्या एक आदमी आकर उस मूर्ति को हिला कर चिल्ला रहा है,”ये तो सो गयी…… सारा शो ख़राब कर दिया ,कहाँ है इसका बाप ?”
जी हाँ ! मूर्ति नहीं ये छोटी सी बच्ची है. बच्ची का पिता हाथ जोड़ कर खड़ा है ,”साहब बच्ची भूखी है,थक कर सो गयी शायद।” ” चुप्प ” आदमी दहाडा। उस आदमी की डांट सुन कर वह चुपचाप बच्ची को लेकर वहाँ से निकल जाता है। अगली सुबह शहर में चर्चा थी……. मंत्री जी के यहाँ एक हज़ार लोगों ने खाना खाया ,पर एक बच्ची वहाँ से भूखी भी गयी…….
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