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बचपन में ये गाना हमने खूब सुना …………………..
“है ना बोलो-बोलो मम्मी बोलो-बोलो,पापा बोलो-बोलो,पापा को मम्मी से,मम्मी को पापा से प्यार है ,प्यार है।”
पापा-मम्मी बच्चों से प्यार करते हैं ये तो हमें पता था,पर वो एक-दूसरे से भी प्यार करते हैं -ये बात हमें ये गाना सुन कर ही समझ में आयी।बात ये नहीं है कि ,हम आज के बच्चों की तरह चतुर-सयाने नहीं थे ,बात है कि तब प्यार के प्रदर्शन का या यूँ कहें कि ,प्यार जताने का चलन नहीं था।भारत में जब वैलेंटाइन-डे आया,तब तक मै दो बच्चों की माँ बन चुकी थी और मेरे बच्चे ये गाना गाने लायक हो चुके थे।
हाँ तो बात प्यार की है तो एक दौर वो था ,जब प्यार का इज़हार होता था ……..कॉलेज में फ्री पीरियड में,घर की छतों की मुंडेर पर ,परदे के पीछे, बगीचे में पेड़ के नीचे या किसी भी कोने- अतरे में।दिल से दिल तक प्यार की बात पहुँचने में अरसा लग जाता,कभी मंजिल मिलती और कभी दिल की बात दिल में ही रह जाती।दिल को बहलाने के लिए रफ़ी,मुकेश के गाने ही काफ़ी होते।एक दौर आज का है …………….इन्टरनेट है,स्मार्ट फ़ोन हैं ,चुटकी बजाते ही, दिल की बात अगले दिल तक ! अंजाम चाहे जो हो,आगाज़ तो हो ही जाता है।अब प्यार में पड़ना जरूरत बन गया है या यूँ कहें कि,प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।जो भी हो …… आज मै क्या गलत है और क्या सही,इस चक्कर में नहीं पड़ने वाली हूँ।मैंने वो दौर भी देखा है और ये भी,तो इतना जरूर कहूँगी कि,प्यार तब भी ‘दिल दा मामला’ था और अब भी है।दुनिया चाहे कितनी बदल जाये,प्यार की तासीर तो वही रहेगी।
प्यार करने वालों का प्यार अमर रहे इसी दुआ के साथ जाते-जाते फिर एक गाना ………….”सोलह बरस की बाली उमर को सलाम,ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम”
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