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कल घर में सत्यनारायण भगवान् की कथा का आयोजन था ,जो माह में एक बार होता ही है। हमारे पंडित जी भी पिछले सोलह सालों से हमें हर महीने कथा सुना रहे हैं। कथा के बाद पंडित जी की वार्ता चलती है ,जो पतिदेव बैठ कर सुनते हैं। मैं उस समय रसोई में होती हूँ। कल पति महाशय थे नहीं ,सो रसोई में भी ज्यादा काम नहीं था और पंडित जी की वार्ता भी मुझे ही सुननी थी। प्रसाद ग्रहण करते -करते ,पंडित जी मौसम,खेत -खलिहान से होते हुए अपने गाँव की राजनीति पर आ गए। उन्होंने बारीकी से मुझे समझाया कि , कैसे ग्राम-प्रधानी के चुनाव में गाँव के पुरवे (मोहल्ले )अलग -अलग जाति के आधार पर बँट जाते हैं। यहाँ वोट काटने वाले उम्मीदवार की भूमिका भी अहम् होती है और प्रायः चुनाव से पहले ही तय होता है कि ,कौन जीतेगा। पर इस बार उनके गाँव में फ़र्ज़ी मतदान हुआ और जिसे नहीं जीतना था वो जीत गया। अब विरोधी दल (जिसमे पंडित जी का लड़का भी है )ने कमिश्नर के पास शिकायत करके चुनाव रद्द करने की अपील की है। जीता हुआ उम्मीदवार बेचैन है और एड़ी -चोटी का जोर लगा रहा है। पंडित जी का बड़ा लड़का सचिवालय में ड्राइवर के पद पर तैनात है और वो सीधे प्रमुख -सचिव से कमिश्नर को फ़ोन करवा सकता है -ऐसा पंडित जी ने मुझे बताया। मैं सुबह से भूखी-प्यासी ,पंडित जी का मुँह देख कर सोच रही थी कि , जब ग्राम-प्रधान के चुनाव में इतनी उठा-पटक है तो प्रादेशिक स्तर पर क्या- क्या नहीं होता होगा और सचिवालय में जब ड्राइवर की इतनी हनक है तो अफसरों के तो कहने ही क्या ! मेरे मनोभावों को शायद ताड़ते हुए पंडित जी अपना थैला सम्हालते हुए उठे और बोले ,” अब आप कुछ खाइये -पीजिये ,मैं चलूँ। “पंडित जी को गेट तक विदा करते हुए मेरे मष्तिष्क -पटल पर अखबार में नेताओं और चोरों की लूट -खसूट की खबरे ,टीवी पर दंगल करते चेहरे और आगामी चुनाव की तस्वीर एक साथ तैर गयी। अंदर आकर इत्मीनान से प्रसाद खाते समय मैं यही सोच रही थी कि ,कोई जीते या हारे पर देश को तो हम जैसे मध्यम वर्गीय लोग ही चलायमान रखे हुए हैं जो ,सड़क पर बाएँ चलने से लेकर ईमानदारी से टैक्स भरने के नियमों का पालन करते हैं।
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